ह्रास के आयोजन का प्रमुख उद्देश्य या आवश्यकता निम्नलिखित है :-
- शुद्ध लाभ-हानि के निर्धारण के लिए- किसी व्यवसाय के सही लाभ तभी ज्ञात हो सकते हैं जब उन लाभों के उपार्जन के लिए लगाई गयी सभी लागतें लाभ-हानि खाते में डेबिट कर दी जाएं। क्योंकि आय कमाने में सम्पत्तियों का प्रयोग भी किया जाता है अतः सम्पत्तियों का मूल्य ह्रास भी अन्य व्ययों जैसे मजदूरी, वेतन, किराया, आदि की तरह ही व्यय है।
- चिट्ठे द्वारा सही आर्थिक स्थिति प्रगट करने के लिए- यदि सम्पत्तियों पर ह्रास नहीं लगाया जायेगा तो वह चिट्ठे में अपने वास्तविक मूल्य से अधिक मूल्य पर दिखाई जाएगी जिससे चिट्ठा व्यवसाय का ‘सच्चा एवं सही’ (True And Fair) चित्र प्रस्तुत नहीं कर सकेगा।
- सही उत्पादन लागत ज्ञात करने के लिए- यदि ह्रास का लेखा नहीं किया जायेगा तो वास्तु की ठीक-ठीक उत्पादन लागत ज्ञात नहीं हो सकेगी क्योंकि ह्रास भी एक व्यय है जो स्थायी सम्पत्ति के पयोग की लागत बतलाता है। क्योंकि उत्पादन लागत के आधार पर ही उपभोक्ताओं से वसूल किया जाने वाला मूल्य निर्धारण किया जाता है अतः यदि उत्पादन लागत में ह्रास को सम्मिलित नहीं किया गया तो विक्रय मूल्य वास्तविक मूल्य से काम निर्धारित हो जायेगा और परिणामस्वरूप लाभों में गिरावट आएगी।
- सम्पत्ति के प्रतिस्थापन के लिए कोषों की व्यवस्था करने के लिए- यद्यपि ह्रास की राशि को लाभ-हानि खाते में डेबिट किया जाता है परन्तु अन्य व्ययों की भांति इनका नकदी में भुगतान नहीं किया जाता है। अतः ह्रास की राशि व्यवसाय में ही संचित हो जाती है और स्थायी सम्पत्तियों के अनुमानित जीवनकाल के व्यतीत होने के बाद नयी सम्पत्ति के क्रय के लिए इस संचित राशि का प्रयोग किया जाता है।
- लाभांश का पूंजी में से वितरण रोकने के लिए- यदि ह्रास न लगाया जाए तो लाभ-हानि खाते द्वारा दिखाया गया लाभ व्यवसाय के वास्तविक लाभ से अधिक होगा। यह अधिक लाभ या तो व्यवसाय के स्वामियों द्वारा निकाल लिया जायेगा या अंशधारियों में लाभांश के रूप में बंट जायेगा। इस प्रकार बांटे गए लाभांश में ह्रास की वह राशि भी शामिल होगी जो वास्तव में पूंजी का ही भाग है।
- अधिक आयकर से बचने के लिए- करों की गणना के लिए ह्रास को लाभों में से घटाया जा सकता है। यदि ह्रास का लेखा न किया जाये तो लाभ-हानि खाते द्वारा प्रदर्शित किया गया लाभ वास्तविक लाभ से अधिक होगा आतः आयकर भी अधिक देना पडेगा।