ह्रास (Depreciation) के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं :-
- निरन्तर प्रयोग करने से (by continuous use)– स्थायी सम्पत्तियों के निरंतर प्रयोग करने से इनकी टूट-फुट (Wear and Tear) हो जाती है जिससे इनका मूल्य काम हो जाता है।
- समय व्यतीत होने से (by the passage of time)– ज्यादातर सम्पत्तियाँ ऐसी होती हैं कि चाहे उनका प्रयोग किया जाए या न किया जाये एक निश्चित अवधि के व्यतीत होने पर उनका मूल्य शुन्य हो जाता है। इनके मूल्य में कमी प्राकृतिक कारणों जैसे वर्षा, तेज हवाओं, मौसम में बदलाव, आदि के कारण होती रहती है।
- कानूनी अधिकारों की अवधि समाप्त होने से (By the expiry of the legal rights)– कुछ सम्पत्तियाँ ऐसी होती हैं जिनका जीवनकाल बिलकुल निश्चित होता है पट्टे(Lease) पर ली गयी सम्पत्तियाँ। उदाहरण के लिए, यदि कोई सम्पत्ति ₹ 5,00,000 में 20 वर्ष के लिए पट्टे पर ली गयी है तो प्रत्येक वर्ष इसका मूल्य 1/20 अर्थात ₹ 25,000 कम होता जायेगा और इस प्रकार 20 वर्ष व्यतीत होने पर इसका मूल्य शुन्य हो जायेगा, चाहे इसका प्रयोग किया जाए या नहीं।
- अप्रचलन के कारण (By obsolescence)– प्रायः किसी नए आविष्कार के होने से अथवा कोई नयी तकनीक आ जाने से पुरानी सम्पत्तियाँ काम में लेनी बंद करनी पड़ती हैं यद्यपि भौतिक रूप सेइसका प्रयोग किया जा सकता है।
- दुर्घटना के कारण (due to accident)– कई बार कई मशीनें आग, भूचाल, बाढ़ इत्यादी से नष्ट हो जाती हैं अथवा कोई वहां दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है।
- रिक्तता के कारण (by depletion)– खाने तथा तेल के कुंए आदि ऐसी सम्पत्तियाँ हैं जिनका भण्डार सीमित होता है और उनमे से पदार्थ निकलते रहने से वह रिक्त होती चली जाती हैं। इससे इनका मूल्य भी काम होता चला जाता है।
- बाजार मूल्य में स्थायी कमी(Permanent decrease in market value)– स्थायी सम्पत्तियों के बाजार मूल्य में जो उतार-चढ़ाव होते रहते हैं प्रायः उन पर ध्यान नहीं दिया जाता, क्योंकि स्थायी सम्पत्तियाँ व्यवसाय में प्रयोग करने के लिए होती है न कि पुनः विक्रय के लिए। परन्तु कुछ सम्पत्तियाँ ऐसी होती हैं कि उनके मूल्य में स्थायी कमी हो जाती है तो इस कमी को ह्रास मान लिया जाता है जैसे विनियोगों के मूल्य में स्थायी कमी।